बुधवार, अप्रैल 25, 2007

हमारे घर ना आएगी कभी ख़ुशी उधार की

हर तरफ एक उदासी का आलम था या हर सन्नाटे में एक अजीब सा शोर था जो मन को बेचैन किये जा रहा था। एक कमरे से दुसरे कमरे, दुसरे से तीसरे कमरे में , कभी बालकनी कभी बगीचा सभी जगह जाकर देख लिया हर जगह यह सन्नाटे का शोर पीछा किये आ ही जाता था। इससे भागने की जगह भी ख़त्म हो गयी थी , यूही थक कर बैठी तो सामने लगा आईना हँस दिया। उसकी अट्टहास में वह बात नहीं थी जो मेने तब सुनी थी जब मुझे सोलह्वा साल लगा था , जब सब कुछ नया और जवां लगता था। यह हँसी वैसी भी नहीं थी जो पहली बार जीवनसाथी से मिलने के लिए तैयार होते वक़्त आईने के सामने आ रही थी। यह हँसी वैसी भी नहीं थी जो पहली बार माँ बनने के उत्साह से आईने के सामने आयी थी।
तो फिर यह कैसी हँसी हैं? किसकी हैं? इतनी अनजानी क्यों हैं? ऐसा लग रहा था मानो यह हँसी मेरे सन्नाटे के शोर का मज़ाक बना रही हो,मुझे चिढा रही हो। एक मन हुआ आईना ही तोड़ दूं ,पर फिर भी यह बंद नहीं हुई तो? यही सोचते सोचते आंसू से भरी आंखें जो शायद कई रातों से जाग कर थक गयी थी , यकायक नींद के आगोश में खो गयी। आगोश में अंतर्मन कि चेतना मानो मेरा ही इंतज़ार कर रही थी। उससे रूबरू हो उस अनजानी हसीं का रहस्य खुल गया। मेरा अंतर्मन ही मुझ पर हँस रहा था पर मैं इसे पहचानी क्यों नहीं? अभी मैं कुछ सोच ही रही थी कि अंतर्मन बोला कितना समय हो गया हमें रूबरू हुए , शायद इसीलिये तुम मेरी अट्टहास भी नहीं पहचानी। सच ही तो हैं पिछले कई सालों मैं कितने नए रिश्तों मैं बंध गयी कितने किरदारों में खो गयी , कहॉ फुरसत मिली अंतर्मन से रूबरू होने की। परिवार , समाज, रिश्तेदार इन सबके बीच अंतर्मन को तो बिल्कुल ही भूल गयी थी। कभी फुरसत ही नही मिली या यूं कहूँ की फुरसत निकाली ही नहीं।
पर फिर आज अचानक अपने अंतर्मन कि दस्तक कैसे सुनायी दे गयी मुझे?आज दुःख के इस सागर में जब मैं अकेली डूब रही हूँ तो केवल मुझे अपने अंतर्मन कि आवाज़ ही क्यों सुनायी दे रही हैं?वह सब लोग कहॉ हैं जिन्हें मैं देखना चाहती हूँ?वह सब कहॉ हैं जिन्हें मैने अपना वह समय और दुलार भी दिया जो मेरे अंतर्मन का था?कहॉ है वह खुशियाँ जिन्हें मैं महसूस करना चाहती हूँ? अंतर्मन मेरे इन सवालों पर बस हँसा चला जा रह था? और मैं मूढ़ उन सभी प्रश्नों के उत्तर कि आस मैं इधर उधर बेतहाशा भागी जा रहीं थी की तभी अंतर्मन बोला" वह लोग जिनका तुम्हें इंतज़ार हैं नहीं आएंगें , नहीं देखेंगे तुम्हें मुड़कर, वह सुख के साथी हैं शायद अब तुम्हें पहचाने भी ना। वह खुशियाँ जिनका तुम्हें बेसब्री से इंतज़ार हैं नहीं आएँगी क्योंकी वह खुशिया उधार कि हैं?"और एक अट्टहास के साथ अंतर्मन कहीँ विलीन हो गया। यकायक मेरी भी आंख खुल गयी अचानक अपने आप को काफी हल्का महसूस कर रही थी, अब वह हँसी भी नहीं सुनायी दे रही थी। उठकर आईने के सामने गयी तो गालों पर फैला काजल था,अंतर्मन कि चेतना अभी भी मस्तिष्क मैं हिलोरे ले रही थी। सब कुछ धुला धुला सा लग रहा था जैसे बारीश कि बोछार से धुलने के बाद पेड पोधे लगते हैं।
ठंडे पानी से चहरे को धोया,बाल बनाए, कपडे सुव्यवाथित किये और पास पडे प्लेयर पर मधुर संगीत लगाया। पुनः आईने के सामने जाकर खडी हो गयी, अपने ह्रदय पर हाथ रख कर अपने अंतर्मन से वादा किया "हमारे घर ना आएगी कभी ख़ुशी उधार कि।"

7 टिप्‍पणियां:

Sudarshan Angirash ने कहा…

well said mamta.

+ve points:
1. Good use of hindi. seems article is "direct DIL SE".
2. nice scene creation, specially in second para.
3. good start with a proper end, target achieved in less words that is appreciable.


-ve points:
1. you are not an optimist. why do you always write a story with tears or tragedy. this is not all in life. try to target something else next time.


over all very interesting. once started reading can't stop till the end.

Good Luck... keep writing

- A critic (Sudarshan)

Sanjeet Tripathi ने कहा…

भावाभिव्यक्ति अच्छी है आपकी, साथ ही लेखनी मे प्रवाह भी है।
लगता है आप "नारद" से परिचित या उसमें पंजीकृत नही हैं।
अगर नही तो नारद के बारे में जानने के लिए कृपया यहां जाएं http://narad.akshargram.com/

और नारद पर पंजीकरण के लिए कृपया यहां देखेंhttp://narad.akshargram.com/register/

शुभकामनाएं

शैलेश भारतवासी ने कहा…

आपकी बात तो ठीक है, मगर सबसे पहले आप अपना चिट्ठा नारद और हिन्दी-ब्लॉग्स पर रेजिस्टर करायें। आपके चिट्ठे का लिंक हिन्द-युग्म से भी जोड़ा जा रहा है।

धन्यवाद।

Udan Tashtari ने कहा…

क्या हो गया?? इतनी घोर उदासी!!! खैर, स्वागत है हिन्दी चिट्ठाजगत में. थोड़ा बहुत हँसने वाली पोस्ट भी हो जायें, तब मजा आये. नारद दर्शन जरुर कर लें. उपर साथियों ने मार्ग तो सुझा ही दिया है.

उन्मुक्त ने कहा…

हिन्दी चिट्ठा जगत में स्वागत है। अब उदासी नहीं रहेगी। हम सब देखेंगे कि खुशियां ही आपके पास रहें।

उन्मुक्त ने कहा…

लगता है कि आपने पिछली दो चिट्ठीयां justify करके लिखीं हैं। इस लिये फैल रहीं हैं। left align करके लिखें तो अच्छा रहेगा। मैंने कुछ इस बारे में यहां कुछ लिखा है।

Mohinder56 ने कहा…

सुन्दर लिखा है आपने.. मन के विचारो को शब्दों में ढालना आसान काम नहीं मगर आप ने बखूबी निभाया है.. बधाई हो... लिखते रहिये