बुधवार, सितंबर 20, 2006

बज़(buzz)

हाए, ए.एस.एल प्लीज़।{Hi,asl(age,sex,location) please}
कमप्यूटर के पटल पर जैसे ही यह वाक्य अवतरित हुए तो ध्यान यकायक उस ओर खींच गया।
अपनेँ देश से दूर परदेस मे "इंटरनेट" एक वरदान ही तो हैँ ,एक "यूज़र आई.डी." याहू मैसेन्ज़र" पर बनाए और हो जाए अपने दोस्तोँ और रिशतेदारोँ के लिए उपलब्ध। कुछ यही सोचकर मैनेँ भी अपना "आई.डी." बना लिया।
अचानक हुए इस बज़ ने मन को विचलित कर दिया, और न चाहते हुए भी उस और ध्यान देना पड़ा। ज्ञात हुआ कि कोई जानकारोँ मे से नहीँ है,अतः राहत मिली चलो अपने काम को पूरा कर लूगीँ।बस फिर क्या फटा़फट़ लिख डाला"मैँ अनजानोँ से बात नहीँ करती,कृपया माफ करेँ।"
जवा़ब आया" एक समय तो सभी अनजानेँ होते है।"
इस जवा़ब से मेरा काम पर से सारा ध्यान काफुर हो गया।
मैनेँ लिखा"जनाब, मैँ बात करने की इच्छुक नहीँ हुँ, अतः आप समय न खराब करेँ।"
वहाँ से लिखा आया"आप शायद पहले किसी बुरे अनुभव के फलस्वरूप मुझे टाल रहीँ हैँ।"
मानसपटल पर कुछ बुरे अनुभव तेर गए।
कुछ सोच कर लिखा"ठीक हैँ आप के साथ बात करके मैँ अपने आप को एक मौका और देती हुँ।"
इसी तरह अनुनय विनय के बाद हमारी बातचीत आरंभ हुई।
कुछ ओपचारिक बातो के बाद अचानक अनेकानेक विस्मियादी बोधक चिन्होँ सहित लिखा आया,
"आप विवाहित हैँ, आपके बायोडेटा मैँ लिखा हैँ।"
मुस्कुरा कर मैनेँ लिखा,"जी हाँ,कुछ ड़ेढ साल से इस अनुपम सुख का आनंद ले रही हुँ।"
शायद स्वर दुखी ही रहा होगा,लिखा आया"ओह मैनेँ सोचा आप.............खैर जाने देँ।"
यूँ ही सिलसिला बढ़ा तो ज्ञात हुआ जिनसे बात कर रही हुँ दरसल वो एक फौज़ी हैँ।मन मैँ आदर के भाव उमड़ आए और कह ड़ाला"धन्यवाद,आप ही लोगोँ के कारण़ हमारा देश सुरक्षित हैँ।"
सिलसिले को ज़ारी रखते हुए जनाब ने पुछा"आपका "वाईल्डेस्ट थाँट" क्या हैँ?"
मैनेँ कहा "किस परिपेक्ष मे जानना चाहते हैँ?"
तुरंत जवाब आया,"कमाल हैँ ,क्या आप समझी नहीँ।"
मैने कहाँ," जी नहीँ।"
सैनिक साहब फरमाए," जी आप विवाहित हैँ, आप की एक सीमा है तो आपका मन नहीँ किया आज़ाद खुले आकाश मे उड़ने को,बंधन की सीमा के बाहर थोडा टहल आने को।"
अभी भी मैँ उन पंक्तियोँ के मध्य छुपे मतलब को ठीक से समझ नहीँ पाई थी इसलिए पुछ बैठी,"कभी इस ओर ध्यान नहीं गया।"
फौज़ी ने कहा," अभी भी देर नहीं हुई है, मैं और आप केवल शब्दों के माध्यम से इस बंधन की रेखा से बाहर उड़कर देखते हैं।"
हमने भी कह दिया,"अब आप अपना कोई तानाबाना बताए तो हमारी मूढ़ मेधा को कुछ समझ आए।"
सिपहीया जी जो शुरु हुए तो समझ आया " बंधन से बाहर" का आशय, वहीं उन्हें विराम दे कर हमने कहा," मैं समझ गई और मैं इससे सहमत नहीं,कृपया अपना समय नष्ट न करेँ।
कुछ बोखलाए से रहेँ होगेँ तभी तो बोलेँ,"मैँ तो केवल शब्दोँ से खेलने को कह रहा हुँ।"
हमने भी कहा,"मैं शब्दों की महत्वता को जानती हुँ इसीलिए दुरपयोग नहीं कर सकती।"
वहाँ से एक बज़ आया,शायद उन्हें हमारे विचार कुछ खासा पसंद नहीं आए।
खैर हमने कहा,"क्या आप हमारा "वाईल्डेस्ट थाँट" जनना चाहेगें।"
अभी भी किसी चमत्कार की चाह मे वे बोले," जरूर, क्यों नहीं।"
मैनें कहना आरंभ किया,"मेरा "वाईल्डेस्ट थाँट" अपने जीवनसाथी के साथ शांतिमय,प्यार से भरपूर और समपि॓त जीवन जीना हैं, अब वो चाहे सपना हो या "इंटरनेट चेटिंग"।"
महाशय शायद समझ गए होगें की उनका बज़ आज गलत ज़गह पड़ गया हैं।
कुछ समय यूहीं चुप्पी का आलम रहा,जिसे मैने ही एक बज़ से तोड़ा और जवाब का इंतजार किये बिना ही लिखा,"आजकल हर कोइ इस तथाकथित आज़ादी के सपने देखता है। बंधन के बाहार टहल आने की चाह दिन दुनी रात चौगनी गति से बढ़ती ही जा रही है। फिर ऐसे मे शांतिमय,प्यार से भरपूर ,समपि॓त जीवन जीना एक चुनौती बनता जा रहा हैं।"
इतना कुछ कहने पर भी कोई जवाब नहीं आया, तो हमने फिर बज़ किया।
दो चार बज़ के बाद बातचीत समाप्त हो गई। हमने घड़ी सम्हाली तो देखा १२ बजे है।
अपने अधुरे काम को कल पर छोड़कर, हमने चादर सम्हाली। मन मैं ख्याल आया की इस तथाकथित आज़ादी को हवा देने का काम करने वाली फिल्मों और दोपहरी धारावाहिकों की फेरिस्त जितनी लंबी है उससे भी लंबी उसे पसंद करने वालो की है।ऐसे मे मै इस "वाईल्डेस्ट थाँट" को जीना चाहाती हुँ।
यह सोचते सोचते कब आँख लग गई पता ही नहीं चला।