हंगामा है क्यों बरपा
हंगामा है क्यों बरपा
टी.वी पर एक समीक्षा देखी, "गांधीगीरी का नया फामू॓ला"। गणमान्य समिक्षाविदों का जमावड़ा और बहस का मुद्दा हाल ही मे प्रदशि॓त फिल्म " लगे रहो मुन्ना भाई"। हमने भी देखी थी यह फिल्म,सो स्वतः ही इस बहस से जुड़ जाने का मानस बन गया। वाद-परिवादों के झुरमुट से गणमान्य समिक्षाविदों ने निणॆय निकाला कि,"हालाकिं फिल्म गांधी के विचारों को नए आयाम से नव पीढी़ को परोसने का सराहनीय काम करती है,फिर भी इस फिल्म ने गांधी की विचारधारा को "गांधीगीरी" का नाम देकर मखमल मे टाट का पैबंद लगा दिया है।"
बस इसी " गिरी" के गांधी के नाम से जुड़ जाने से समाज़ के एक तबके मे तो जैसे हंगामा ही बरप गया। भई हम तो कहते है भला हो इस फिल्म का जिसने गांधी की भूली हुई शिक्षा को फिर से याद तो दिला दिया। उन अनमोल मूल्यों को फिर से जी़वित कर दिया,जिसे शायद हमारे समाज़ ने गांधी की देहान्त के साथ ही भावभीनी श्रधांजलि दे दी थी।
आजकल जिस तेज़ गति से बिना पीछे मुड़े हम आगे-आगे,सबसे आगे निकल जाने के लिए भागे जा रहे है,उसमे हमे तो यह फिल्म एक ऐसा हवा का झोंका लगी जो आपने साथ गुज़रे कल के मुल्यों का एहसास लाई हो। ऐसा एहसास जो मन मस्तिष्क को झणझोर देने की झमता रखता हो।
हमारे देश मे मुद्दों का बाज़ार हमेशा उबलता रहता है और ऐसे मे अक्सर साधारण सी, पर पते की बात भी इसी बाज़ार की भेंट चढ़ जाती है। भई जैसा देश वैसा भेस रखने मे हजॆ ही क्या है।आज की युवा पीढ़ी को कोई बात उन्हीं की भाषा मे समझाई जाए तो उसके सफल होने के आसार और बढ़ जाते है। क्या माँ बाप बचपन मे तुतलाते हुए अपने बच्चे को खुद तुतला कर उसे उसी की भाषा मे नहीं समझाते।फिर यह हंगामा क्यों बरपा है यारों।
हाथ कंगन को आरसी क्या,हम आपको एक उदाहरण भी दे देते है। हाल ही मे मुम्बई की एक पाँश काँलोनी के बाशिंदों ने इसी "गांधीगिरी" के सबक के चलते वहाँ चल रहे देह व्यापार और व्यापरियों की वो हालत की इस जन्म मे तो वें इस व्यापार की और देखने से रहे। दरसल कई बार पुलिस मे शिकायत के उपरान्त जब कोई भी कानूनी कायॆवाही होते न देख, मोहल्ले की सभी औरतें, आदमी, बच्चे और बुढ़े मिल कर वहाँ चल रहे सरोज लाँज मे घुस कर एक-एक कमरे की तलाशी लेकर सब जोड़ों को बाहर निकाला तथा उन सभी से सरे आम ऊठक-बैठक लगवाई। साथ मे कसम भी दिलवाई की वें आईन्दा इस काम से तो तौंबा ही करेगें।
अब आप ही फैसला ले की यह काम गांधी की अंहिसा नीती से ही तो हुआ वरना तो बरसों से पुलिस के कानों मे तो ज़ूँ तक नहीं रेंग रही थी।
तो जनाब अगर हंगामा ही बरपाना हे तो आंतकवाद के खिलाफ बरपाओ,अशिक्षा के खिलाफ बरपाओ,शोषण के खिलाफ बरपाओ, असामनता के खिलाफ बरपाओ न की गांधी के साथ जुड़े "गिरी" पर।
2 टिप्पणियां:
I have been to your article, but madam Gandhigiri is however a try to make gandhi live in our life. you can say that this is the need of new generation.
before A COUPLE OF YEARS I HEARD OF A PHRASE " jaisa desh waisa bhesh". so i don't think that there is something wrong in tis new approach to Gandhi.
प्रिया जी
आप अच्छा लिख रही है । लिखने के बाद थोडा समय सम्पादन मे लगाती तो और भी सशक्त लेखन उपजता । इन दोनो पोस्ट के माध्यम से जो आप कहना चाह रही है उसे और विस्तार चाहिये ।
लगे रहो
महेन्द्र सिन्ह
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